क्या आपके फेफड़े आपसे पहले बूढ़े हो रहे हैं ? ये टेस्ट खोलेंगे राज

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संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी 

जयपुर (संस्कार सृजन) स्कूल में टीचिंग कराने वाली और दो बच्चों की मां मानसी, हमेशा से एक्टिव और हेल्दी रही थी। लेकिन कुछ महीनों से वो अजीब थकान महसूस कर रही थी। उसने सोचा शायद काम का स्ट्रेस और घर की जिम्मेदारियां वजह होंगी। लेकिन उसे आराम करने पर भी फर्क नहीं पड़ा। मानसी की ब्लड टेस्ट, हार्ट चेकअप, थायरॉइड और विटामिन्स की रिपोर्ट सब नॉर्मल आईं। लेकिन थकान फिर भी कम नहीं हुई। धीरे-धीरे उसे सीढ़ियां चढ़ते या तेज चलने पर हल्की सांस फूलने लगी। जिसके बाद मानसी ने डॉक्टर की सलाह पर अपना पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट (PFT) करवाया।

मानसी को हैरानी इस बात की हो रही थी कि उसे कभी अस्थमा या न्यूमोनिया जैसे फेफड़ों की बीमारियां नहीं हुई थीं। लेकिन सेहत ज्यादा बिगड़ने पर उसे टेस्ट करवाना पड़ा। मानसी की रिपोर्ट ने उसे हैरान कर दिया, उसके फेफड़ों की क्षमता उसकी उम्र से कम निकली। यानी उसके फेफड़े उससे पहले बूढ़े हो रहे थे। क्या आप इसके पीछे की वजह जानते हैं ? 

फेफड़े जल्दी बूढ़े क्यों होते हैं?

उम्र बढ़ने के साथ फेफड़े धीरे-धीरे कमजोर होते ही हैं। लेकिन कई बार ये प्रक्रिया लाइफस्टाइल और माहौल की वजह से तेज हो जाती है। यूरोपियन रेस्पिरेटरी जर्नल की एक स्टडी में पाया गया कि समय से पहले बूढ़े होते फेफड़े, COPD (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज), पल्मोनरी फाइब्रोसिस और कुछ तरह के फेफड़ों के कैंसर का बड़ा कारण बन सकते हैं।

फेफड़े शरीर के उन अंगों में से हैं जो लगातार बाहरी हवा के संपर्क में रहते हैं। हर सांस के साथ धूल, धुआं, एलर्जी पैदा करने वाले कण और टॉक्सिन्स अंदर जाते हैं। थोड़ी बहुत परेशानी से स्वस्थ फेफड़े निपट लेते हैं, लेकिन लगातार प्रदूषण, सिगरेट (या सेकंड हैंड स्मोक), किचन का धुआं या फैक्ट्री के केमिकल्स का असर उन्हें तेजी से खराब करता है।

शहरों की खराब एयर क्वालिटी इंडेक्स बड़ा कारण :-

शहरों में खराब AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) इसका बड़ा कारण है। हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण फेफड़ों में सूजन और नुकसान करते हैं, जिससे उनकी लचीलापन और क्षमता कम हो जाती है।

फेफड़ों की सेहत कैसे जांची जाती है?

पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट्स (PFTs)- 

कुछ आसान और नॉन-इनवेसिव टेस्ट्स हैं जो बताते हैं कि आपके फेफड़े कितने अच्छे से काम कर रहे हैं।

स्पाइरोमेट्री- 

यह फेफड़ों का सबसे आसान और आम टेस्ट है। इसमें एक ट्यूब में सांस भरकर छोड़ते हैं। इससे पता चलता है कि आपके फेफड़े कितनी हवा कितनी तेजी से खींच और निकाल पा रहे हैं। ये सस्ता और जल्दी होने वाला टेस्ट है।

लंग प्लेथिस्मोग्राफी- 

इसमें आपको एक ग्लास केबिन जैसे चैम्बर में बैठाया जाता है और माउथपीस से सांस लेने को कहा जाता है। इससे फेफड़ों का वॉल्यूम और एयरवेज की रेजिस्टेंस मापी जाती है।

गैस डिफ्यूजन स्टडी- 

ये टेस्ट चेक करता है कि फेफड़े से ऑक्सीजन कितनी असरदार तरीके से खून में जा रही है।

कार्डियोपल्मोनरी एक्सरसाइज टेस्ट (CPET)- 

इसमें एक्सरसाइज के दौरान दिल, फेफड़े और मसल्स का रिस्पॉन्स मापा जाता है। ये आमतौर पर तब किया जाता है जब बिना वजह थकान या सांस फूलने की शिकायत हो।

जल्दी पहचान क्यों जरूरी है?

फेफड़ों की बीमारियां अक्सर चुपचाप बढ़ती हैं। जब तक लक्षण साफ नजर आते हैं, तब तक नुकसान काफी हो चुका होता है। इसलिए जैसे हम ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्रॉल चेक करवाते हैं, वैसे ही फेफड़ों की हेल्थ की भी रेगुलर जांच जरूरी है।

समय से पहले बूढ़े हो रहे फेफड़े सिर्फ सांस लेने की क्षमता ही नहीं घटाते, बल्कि स्टैमिना भी कम कर देते हैं, इंफेक्शन का खतरा बढ़ा देते हैं और क्वालिटी ऑफ लाइफ को भी बिगाड़ते हैं। यहां तक कि हड्डियों की कमजोरी और रिबकेज के बदलते शेप से भी फेफड़ों की क्षमता घट सकती है।

क्या कर सकते हैं आप?

टेस्ट करवाएं- अगर बिना वजह थकान या सांस फूलने लगे तो डॉक्टर से स्पाइरोमेट्री की सलाह जरूर लें।

प्रदूषण से बचें- धूम्रपान से दूर रहें, एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें और धुएं या केमिकल्स के संपर्क में कम से कम रहें।

एक्टिव रहें- रेगुलर एक्सरसाइज और खासकर प्राणायाम या ब्रीदिंग एक्सरसाइज फेफड़ों की मजबूती बनाए रखते हैं।

सही खानपान करें- एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खाना फेफड़ों की मरम्मत में मदद करता है।

आजकल लोग समझने लगे हैं कि फेफड़ों की हेल्थ सिर्फ बीमारी से बचने का मामला नहीं है, बल्कि एनर्जी और लाइफ क्वालिटी बनाए रखने का भी है। मानसी की कहानी हमें यही याद दिलाती है कि कभी-कभी समस्या वहीं होती है जहां हम सोचते भी नहीं और सही टेस्ट करवा लेने से हम सचमुच चैन की सांस ले सकते हैं।

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