नवरात्रि के छठे दिन होती है,मां कात्यायनी की पूजा

जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी 

चौमूं / जयपुर (संस्कार सृजन) आज नवरात्रि की छठी तिथि है। नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इस दिन मां के साहस, शक्ति और बाधाएं दूर करने वाले स्वरूप की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी नौ रूपों में से छठी माता हैं, जिन्हें दुर्गा के शक्तिशाली स्वरूपों में माना जाता है। वे महिषासुर नामक असुर को वध करने वाली देवी के रूप में प्रसिद्ध हैं। धार्मिक कथाओं के अनुसार ऋषि कात्यायन की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उनके घर जन्म लिया था इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।

विशेष मान्यता है कि इस दिन की पूजा करने से व्यक्ति की बाधाएं दूर होती हैं, सुयोग्य विवाह की संभावना बढ़ती है, तथा शक्ति, विश्वास और सफलता मिलती है।आइए जानते हैं अंतर्राष्ट्रीय भविष्यवक्ता पंडित रविन्द्राचार्य से नवरात्रि के छठे दिन पर मां कात्यायनी कि पूजा विधि,व्रत कथा,मंत्र व आरती-

मां कात्यायनी कि पूजा विधि-

सुबह जल्दी उठ जाएँ, शुद्ध स्नान करें और नए, स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

पूजा स्थल को साफ करें। गंगाजल या शुद्ध जल से आचमन करें और पूजा के स्थान को शुद्ध करें।

संकल्प लें — अपने मनोकामना और उद्देश्य के साथ संकल्प करें कि आप मां कात्यायनी की पूजा कर रही हैं।

दीप एवं धूप — एक दीप घी से जलाएं, धूप और अगरबत्ती अर्पित करें।

रोली, अक्षत और फूल — मां की माथे पर रोली (अक्षत-संयुक्त) लगाएं और गुलाब, गेंदे आदि पीले या लाल फूल अर्पित करें।

भोग अर्पण- पांच प्रकार के फल, मिठाई, विशेष रूप से शहद, गुड़, लाल फलों आदि का भोग अर्पित करें।

मंत्र जाप और ध्यान — निम्न मंत्रों का जाप करें और माँ की ध्यान मुद्रा में ध्यान लगाएँ।

आरती — अंत में माँ की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

मां कात्यायनी के मंत्र- ॐ देवी कात्यायन्यै नमः

मां कात्यायनी का प्रार्थना मंत्र

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

मां कात्यायनी स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां कात्यायनी कि कथा (व्रत कथा / कथा सार)

कथा में कहा गया है कि महिषासुर नामक असुर अत्यंत दुष्ट था। देवों ने उसकी कृपा से अत्याचार बढ़ा लिया। तब उन्होंने मिलकर तपस्या की कि एक देवी उत्पन्न हो जो असुरों का विनाश करें। उस तपस्या से देवी कात्यायनी उत्पन्न हुईं। वे एक भारिम् रूप धारण करके महिषासुर से युद्ध किया और अंततः उसे परास्त कर दिया। इस कारण उन्हें महिषासुरमर्दिनी कहा जाता है। कथा यह भी कहती है कि उन्हीं की कृपा से देश, धर्म और समाज में स्थिरता आई और भक्तों को भय और बुराइयों से मुक्ति मिली। व्रती विशेष रूप से यह कथा सुनते और मन में श्रद्धा बनाते हुए पूजा करते हैं। इस कथा के माध्यम से यह भाव जगाया जाता है कि हम भी बुराई के सामने अडिग बनें और अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानें।

शुभ रंग, समय एवं सुझाव- इस दिन लाल और पीला रंग वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।

मां कात्यायनी की आरती-

जय-जय अम्बे जय कात्यायनी

जय जगमाता जग की महारानी

बैजनाथ स्थान तुम्हारा

वहा वरदाती नाम पुकारा

कई नाम है कई धाम है

यह स्थान भी तो सुखधाम है

हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी

कही योगेश्वरी महिमा न्यारी

हर जगह उत्सव होते रहते

हर मंदिर में भगत हैं कहते

कत्यानी रक्षक काया की

ग्रंथि काटे मोह माया की

झूठे मोह से छुडाने वाली

अपना नाम जपाने वाली

बृहस्‍पतिवार को पूजा करिए

ध्यान कात्यायनी का धरिए

हर संकट को दूर करेगी

भंडारे भरपूर करेगी

जो भी मां को 'चमन' पुकारे

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