भारतीय ज्ञान परंपरा पर व्याख्यान माला का हुआ आयोजन

जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

सुबह की शुरुआत माता-पिता के चरण स्पर्श से करें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

उदयपुर  (संस्कार सृजन) राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, सेक्टर 4, उदयपुर में भारतीय ज्ञान परंपरा पर एक प्रेरणादायक व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। व्याख्यान माला समन्वयक नवनीत भट्ट ने बताया कि कार्यक्रम का शुभारंभ पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी जगदीश पालीवाल द्वारा प्रार्थना एवं गायत्री मंत्र के सामूहिक उच्चारण से हुआ, जिससे वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत हो गया।


मुख्य वक्ता सरस्वती माहेश्वरी, पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी, ने अपने प्रभावशाली उद्बोधन में भारतीय ज्ञान परंपरा की गहराई और व्यापकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह परंपरा केवल आध्यात्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, योग, संगीत, कला, व्याकरण, नीतिशास्त्र जैसे विविध विषयों में भारत की अद्वितीय उपलब्धियों को समाहित करती है। उन्होंने गुरुकुल परंपरा, संस्कार आधारित शिक्षा, प्राकृतिक जीवन शैली और चरित्र निर्माण की अवधारणाओं को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने उदाहरण स्वरूप आयुर्वेद, योग, पाणिनि का व्याकरण, भास्कराचार्य का गणितीय योगदान और वेदों की वैज्ञानिक दृष्टि का उल्लेख करते हुए विद्यार्थियों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का संदेश दिया।

सनातन पाठशाला मार्गदर्शक गोपाल कनेरिया ने विद्यार्थियों को ध्यान व एकाग्रता  का विद्यार्थियों के जीवन में महत्व  से परिचित कराया और संवादात्मक प्रश्नोत्तर सत्र में  विजेता छात्र - छात्राओं को पुरस्कृत किया। 

कार्यक्रम का संचालन, परिचय एवं आभार प्रदर्शन नवनीत भट्ट द्वारा किया गया। अध्यक्षीय धन्यवाद संस्था प्रधान दीपा चारण ने व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा हैं। आज की नई पीढ़ी को इसका ज्ञान कराना जरूरी तभी वो अपनी संस्कृति से जुड़ेंगे।

दूसरी तरफ राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, सीसारमा में आयोजित सत्र में मुख्य वक्ता मोटिवेशनल स्पीकर आशीष सिंहल ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा न केवल आध्यात्म में बल्कि विज्ञान, संस्कार और पर्यावरण संरक्षण जैसे विविध क्षेत्रों में भी अद्वितीय और समृद्ध रही है। उन्होंने कहा कि संस्कारों और जीवन मूल्यों की प्रधानता के कारण भारतवर्ष में समाज की नींव ‘परिवार’ को माना गया है। सनातन संस्कृति में माता-पिता, घर के बड़ों, गुरु और अतिथि को ईश्वरतुल्य माना गया है। उन्होंने यह भी बताया कि "वसुधैव कुटुम्बकम्" जैसी सार्वभौमिक भावना भारत की उस दृष्टि को दर्शाती है जिसमें संपूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में देखा जाता है। ऐसी महान विचारधारा से ही विश्व में शांति, सद्भाव और सहयोग की भावना स्थापित हो सकती है।

आर्ट ऑफ लिविंग प्रशिक्षिका दिव्या सिंहल ने विद्यार्थियों को ध्यान का अभ्यास कराया और श्रेष्ठ विद्यार्थी जीवन के लिए दस महत्वपूर्ण संकल्प दिलवाए, जिनसे छात्रों के जीवन में अनुशासन, आत्मबल और सकारात्मकता का विकास हो सके।विद्यालय की प्रधानाचार्य माया नागदा एवं प्रभारी लक्षिता मेहता ने मुख्य वक्ता एवं प्रशिक्षिका का हार्दिक आभार व्यक्त किया।

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1. हम सभी किसी ना किसी रूप में जरूरतमंदो की सेवा कर सकते हैं | 

2. पड़ोसी भूखा नहीं सोए इसका ध्यान रखें |

3. जीवन में आप इस धरती पर अपने नाम का एक पेड़ जरूर लगाएँ |

4. बेजुबानों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था जरूर करें !

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