गांधी दर्शन की वैश्विक प्रासंगिकता पर व्याख्यान आयोजित

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संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

लाडनूं (संस्कार सृजन) वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा के पूर्व कुलपति प्रो. नरेष दाधीच ने कहा है कि जिन आधनिक विचारकों के बारे में पूरे विश्व में सबसे अधिक लिखा गया, उनमें महात्मा गांधी सर्वोपरि है। गांधी की विचारधारा पर सबसे अधिक शोध कार्य भी किया गया है। उनका समय ‘गांधी युग’ के तौर पर देखा जाता है। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के सेमिनार हॉल में आयोजित व्याख्यान के तहत ‘गांधी दर्शन की वैश्विक प्रासंगिकता’ विषय पर बोल रहे थे। 

उन्होंने विश्व को गांधी के अवदान के बारे में बताया कि ‘सत्याग्रह’ का तरीका महात्मा गांधी ने खोजा था। इससे पूर्व ‘निष्क्रिय प्रतिरोध’ के रूप में विरोध प्रदर्शन किया जाता था, लेकिन उसमें सत्य एवं अहिंसा का समावेश नहीं था। सत्याग्रह में केवल सत्य के लिए अहिंसक आग्रह सम्मिलित होता है। इसमें साध्य के रूप में सत्य होता है और साधन के रूप में अहिंसा का प्रयोग किया जाता है। साथ ही इसमें साध्य और साधन अपरिवर्तनीय रहते हैं। 

महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की 14 शर्तें तय की थी और उसके लिए एक दर्जन से अधिक तरीके भी बताए थे। व्यक्तिगत लाभ के लिए कभी सत्याग्रह नहीं किया जा सकता है। सत्याग्रह केवल अन्याय का विरोध करने और सत्य के लिए अहिंसा के रूप में अपनाया जाता है। महात्मा गांधी के लिए अफ्रीका में कहा गया था कि जब तक ऐसे आदमी रहेंगे, तब तक मानवता की रक्षा होती रहेगी। गांधी के बाद उनका सत्याग्रह पूरी दुनिया में प्रचलित हो गया है। सत्याग्रह भारत की तरफ से दुनिया को देन है। इसके अलावा भारत की देन केवल धर्म को माना जाता रहा है, जो कि रिलीजन की तरह से बंधन नहीं है, बल्कि वह आध्यात्मिक है, वह व्यक्ति को स्वतंत्रता प्रदान करता है। ‘धर्म’ शब्द की खोज विश्व को अद्वितीय है। गांधी के सतयाग्रह का विश्व में अन्याय के विरोध में प्रयोग राजनीति में शुरू हुआ है। 

व्याख्यान के प्रारम्भ में प्रो. नलिन के. शास्त्री ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया और अंत में प्रो. अनिल धर ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में प्रो. रेखा तिवाड़ी, डा. रविन्द्रसिंह राठौड़, डा. विनोद कस्वां, डा. पुष्पा मिश्रा, डार. प्रगति भटनागर, डा. विकास शर्मा, आरके जैन आदि उपस्थित रहे । 


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