नारी हिंसा एवं उत्पीड़न सभ्य समाज पर कलंक

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

मास्क लगाकर रहें ! सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें !

संस्कार सृजन राम गोपाल सैनी

(संस्कार सृजन) महिला हिंसा उन्मूलन का महत्व  संयुक्त राष्ट्र द्वारा 25 नवंबर को दुनिया भर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को दुनिया भर में महिलाएं हिंसा के विभिन्न रूपों और मुद्दे की वास्तविक प्रकृति के अधीन के तथ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता हैं। सयुंक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा मानवाधिकार का उल्लंघन है  ।

अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा-उन्मूलन दिवस महिलाओं के अस्तित्व एवं अस्मिता से जुड़ा एक ऐसा दिवस है जो दायित्वबोध की चेतना का संदेश देता है, महिलाओं के प्रति एक नयी सभ्य एवं शालीन सोच विकसित करने का आह्वान करता है।   इस दिवस को मनाने के उद्देश्यों में महिलाओं के प्रति बढ़ रही हिंसा को नियंत्रित करने का माध्यम भी है। यह दिवस नारी को शक्तिशाली, प्रगतिशील और संस्कारी बनाने का संकल्प है।

नारी उत्पीड़न, नारी तिरस्कार तथा नारी को निचले व निम्न दर्जे का समझने की जड़ हमारे प्राचीन धर्मशास्त्रों, हमारे रीति-रिवाजों, संस्कारों तथा धार्मिक ग्रंथों व धर्म सम्बंधी कथाओं में पायी जाती हैं।

लेखक- जीएस दायमा, पूर्व वरिष्ठ बैंक अधिकारी एवं सामाजिक कार्यकर्ता

नारी को छोटा व दोयम दर्जा का समझने की मानसिकता भारतीय समाज की रग-रग में समा चुका  है। असल प्रश्न इसी मानसिकता को बदलने का है। इन वर्षों में अपराध को छुपाने और अपराधी से डरने की प्रवृत्ति खत्म होने लगी है। वे चाहे मीटू जैसे आन्दोलनों से हो या निर्भया कांड के बाद बने कानूनों से।  महिलाओं में इस धारणा को पैदा करने के लिये न्याय प्रणाली और मानसिकता में मौलिक बदलाव की भी जरूरत है। देश में लोगों को महिलाओं के अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है और इसका पालन पूरी गंभीरता और इच्छाशक्ति से नहीं होता है। महिला सशक्तीकरण के तमाम दावों के बाद भी महिलाएँ अपने असल अधिकार से कोसों दूर हैं। उन्हें इस बात को समझना होगा कि दुर्घटना व्यक्ति और वक्त का चुनाव नहीं करती है और यह सब कुछ होने में उनका कोई दोष नहीं है।


पुरुष-समाज के प्रदूषित एवं विकृत हो चुके तौर-तरीके ही नहीं बदलने हैं बल्कि उन कारणों की जड़ों को भी उखाड़ फेंकना है जिनके कारण से बार-बार नारी को जहर के घूंट पीने को विवश होना पड़ता है। विश्व महिला हिंसा-उन्मूलन दिवस  दुनिया को महिलाओं की मानवीय प्रतिष्ठा के वास्तविक सम्मान के लिए भूमिका प्रशस्त करना चाहिए ताकि उनके वास्तविक अधिकारों को दिलाने का काम व्यावहारिक हो सके।

1- इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2030 तक महिला हिंसा उन्मूलन कार्यक्रम के तहत चलाए गए यूनाइट अभियान के अंतर्गत किया गया।

2- वर्ष 2008 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिये यूनाइट अभियान चलाया गया।

3- इस वर्ष की थीम ऑरेंज द वर्ल्ड: जनरेशन इक्वलिटी स्टैंड अगेंस्ट रेप  है। इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र द्वारा लोगों को जागरूक करने के लिये 16 डेज एक्टिविज्म अगेंस्ट जेंडर बेस्ड वाॅइलेंस कैम्पेन का आयोजन 25 नवंबर से 10 दिसंबर तक किया जाएगा।

4- संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, विश्व भर में लगभग 15 मिलियन किशोर लडकियाँ (15-19 आयु वर्ग) अपने जीवन में कभी-न-कभी यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं।

5- इसके अलावा 3 बिलियन महिलाएँ वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) की शिकार होती हैं। आँकड़ों के अनुसार, करीब 33% महिलाओं व लड़कियों को शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है।

6- हिंसा की शिकार 50% से अधिक महिलाओं की हत्या उनके परिजनों द्वारा ही की जाती है।

7- वैश्विक स्तर पर मानव तस्करी के शिकार लोगों में 50% वयस्क महिलाएं हैं।


रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में लगभग 650 मिलियन महिलाओं का विवाह 18 वर्ष से पहले हुआ है। WHO की रिपोर्ट के अनुसार प्रतिदिन 3 में से 1 महिला किसी न किसी प्रकार की शारीरिक हिंसा का शिकार होती है।

भारत के संदर्भ में हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो  द्वारा राष्ट्रीय अपराध 2017 रिपोर्ट जारी की गई।रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कुल 3,59,849 मामले दर्ज़ किये गए।इस सूची में सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किये गए, इसके बाद क्रमशः महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कुल मामलों में 27.9% मामले पति या परिजनों द्वारा किये गए उत्पीड़न के अंतर्गत दर्ज़ किये गए। इसके अलावा अपमान के उद्देश्य से किये हमले (21.7%), अपहरण (20.5%) और बलात्कार (7%) के मामले सामने आए।


भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम : 

भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 15(1) में राज्यों को  आदेश दिया गया है कि केवल धर्म, मूलवंश, लिंग, जाति, जन्मस्थान के आधार पर कोई विभेद नहीं किया जाएगा।

महिलाओं की सुरक्षा के लिये घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 पारित किया गया।महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा के लिये कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 लाया गया।संयुक्त राष्ट्र महिला वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र के महासभा द्वारा संयुक्त राष्ट्र महिला का गठन किया गया।यह संस्था महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तीकरण के क्षेत्र में कार्य करती है।इसके तहत संयुक्त राष्ट्र तंत्र के 4 अलग-अलग प्रभागों के कार्यों को संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है।


महिलाओं की उन्नति के लिये बनाये गए प्रभाग:-

- महिलाओं की उन्नति के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना।

- लैंगिक मुद्दों और महिलाओं की उन्नति पर विशेष सलाहकार कार्यालय की स्थापना ।

- महिलाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कोष की स्थापना की गई।

इसमें कोई अतिशयोक्ति नही है कि महिलाएं जन्म लेने से पूर्व से लेकर मरने के बाद तक हिंसा का शिकार  हो रही हैं । जन्म लेने से पूर्व लिँग परीक्षण के माध्यम से भूर्ण हत्या करदी जाती हैं । तथा मरने के पश्चात लाशों के साथ बलात्कार होने की मानव जाति को शर्मसार करने वाली घटनाएं आए दिन सुनने औऱ  पढ़ने को मिलती हैं  । पीड़ितों की थानों मैं रिपोर्ट दर्ज नहीं कि जाती है । तथा महिला थानों की स्थापना से भी  अपराधों में कोई कमी नजर नहीं आ रही हैं । संविधान में पर्याप्त कानूनो का प्रावधान होने के बावजूद तथा निर्भया कांड के बाद बने नये कानूनो ,सरकार द्वारा महिलाओं की उन्नति के लिए बनाई गई सैकड़ों योजनाओं के चलते महिलाओं की सुरक्षा एवं सशक्तिकरण में पर्याप्त सुधार न होना सभ्य समाज के लिए विचारणीय बिंदु है ।थानों में शिकायत मिलने पर रिपोर्ट दर्ज नही कर अपराधी से पूछताछ के बहाने अपराधी के धन बल एवं भुजबल का आंकलन किया जाता हैं  । ऐसी स्थिति में पीड़िता को न्याय मिलने की संभावना पर सवालिया निशान लग जाता हैं ।आज आवस्यकता है महिलाओं को शिक्षित बनाने की , कानूनों को शक्ति के साथ लागू करने की , महिला थानों में संवेदनशील स्टाफ़ की नियुक्ति करने की , महिलाओं के प्रति सभ्य समाज को पूरानी एवं रूढ़िवादी सोच और विचार धारा में बदलाव लाने की , महिलाओं को प्राप्त विधि सम्मत अधिकारों का सम्मान करने की  , महिलाओं को  कानूनी जानकारी उपलब्ध कराने की ।ऐसा करके ही हम विश्व की आधी आबादी  ,मां , बहिन , बेटी  का सम्मान लौटा सकते हैं ।

नोट :- ये लेखक के अपने विचार हैं |


हम सभी किसी ना किसी रूप में जरूरतमंदों की सेवा कर सकते हैं | पड़ोसी भूखा नहीं सोए इसका ध्यान रखें |

" संस्कार सृजन " कोरोना योद्धाओं को दिल से धन्यवाद देता है |

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