117 दिनों बाद कल से होंगे बाबा श्याम के दर्शन

जीवन अनमोल है इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !

मास्क लगाकर रहें ! सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें !

संस्कार न्यूज़ राम गोपाल सैनी

सीकर (संस्कार न्यूज़) श्याम भक्तों के लिए 117 दिनों के बाद अच्छी खबर है। जयपुर से 80 किलोमीटर दूर खाटूश्याम मंदिर को गुरुवार से दर्शनों के लिए खोला जा रहा है। फिलहाल ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के आधार पर ही दर्शन होंगे। बाबा श्याम के दर्शनों के लिए रोजाना 12 हजार श्रद्धालुओं की व्यवस्था रहेगी। SDM अशोक कुमार रणवां और श्रीश्याम मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक में 22 जुलाई से मंदिर को खोलने का फैसला लिया गया है। प्रशासन की ओर से मंदिर खोलने के लिए परमिशन मिलते ही श्रद्धालुओं की ज्यादा भीड़ नहीं हो, इसके लिए कमेटी की ओर से ऑनलाइन बुकिंग दर्शन सिस्टम शुरू किया है।

बाबा के दर्शनों के लिए श्रद्धालु घर बैठे ही ऑनलाइन बुकिंग कर पाएंगे। 8 बजे से रजिस्ट्रेशन शुरू कर दिए गए है। रजिस्ट्रेशन के बाद ही बाबा श्याम के दर्शन कर सकेंगे। खास बात है कि रविवार, एकादशी, द्वादशी को भीड़ की संभावना देखते हुए मंदिर को बंद रखा जाएगा। इस बार भक्तों को गर्भगृह तक नहीं जा पाएंगे। रोजाना मंदिर में दर्शनों के बाद मंदिर परिसर, मेला ग्राउंड आदि को सैनिटाइज कराया जाएगा। इसके अलावा कोविड के नियमों की पूरी तरह से पालना करनी हाेगी। श्रद्धालुओं की भीड़ न हो, मंदिर में सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन रहे, इसके लिए 2 गज की दूरी पर सर्किल बनवाया जा रहा है।

इन नियमों का करना होगा पालन
मंदिर में दर्शनों की व्यवस्था तीन चरणों में रहेगी। सबसे पहले श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होगा। वैक्सीन की पहली डोज का प्रमाणपत्र या RT-PCR की 72 घंटे अवधि की निगेटिव रिपोर्ट प्रवेश द्वार पर बने निरीक्षण केन्द्र पर दिखानी होगी। दर्शन के लिए तीन चरण तय किए गए है। मंदिर में बाबा के सुबह 7 से दोपहर 12 बजे, दोपहर 2 से शाम 5 और 5 से रात 8 बजे तक ही तीन चरणों में दर्शन कराए जाएगें। रोजाना दोपहर 12 से 2 बजे तक मंदिर बंद रहेगा। हर श्रद्धालु को दर्शन के लिए 20 सेकंड दिए जाएंगे। मंदिर में बिना मास्क प्रवेश नहीं मिलेगा, माला प्रसाद पर रोक रहेगी, दंडवत नहीं कर पाएंगे, सभा मंडल से ही दर्शन कर पाएंगे।

ऐसे कर सकेंगे ऑनलाइन बुकिंग
श्रद्धालु मंदिर की वेबसाइट http://www.khatushyam.in पर प्रकिया के प्रारंभ होने के बाद ऑनलाइन बुकिंग का लिंक मिलेगा। इसमें उम्र के अनुसार रजिस्ट्रेशन होगा। इसमें आधार व मोबाइल नंबर, ईमेल अपडेट करना होगा। आप परिवार के साथ आ रहें, तो एड मेंबर करके उनका आधार व मोबाइल नंबर देना होगा। आपको रजिस्ट्रेशन नंबर मिल जाएगा। इसके बाद मोबाइल पर मिले रजिस्ट्रेशन को मंदिर के एंट्री गेट पर दिखाने के बाद ही प्रवेश मिल पाएगा। NRI दर्शनार्थियों को पहले अपने दस्तावेज मेल करने होंगे। इसके बाद रजिस्ट्रेशन के आधार पर उनके दर्शन कराए जाएगें। NRI के भी 72 घंटे में RT-PCR रिपोर्ट व वैक्सीन की रिपोर्ट मान्य रहेगी।

स्थानीय लाेगाें को भी आधार कार्ड से हाे पाएंगे दर्शन
खाटूश्यामजी के स्थानीय लोगों को आधार कार्ड से रोजाना मंदिर कमेटी द्वारा नीयत एक घंटे में दर्शन की व्यवस्था की जाएगी। मंदिर परिसर से बाहर पार्किंग व्यवस्था, मंदिर प्रवेश करने पर सोशल डिस्टेंस एवं कोविड गाइड लाइन की पालना कराई जाएगी। श्रीश्याम मंदिर कमेटी के कोषाध्यक्ष कालू सिंह चौहान ने बताया कि रविवार एकादशी, द्वादशी को भीड़ की संभावना देखते हुए मंदिर को बंद रखा जाएगा। इस बार भक्तों को गर्भगृह तक नहीं जा पाएंगे।

क्यों प्रसिद्ध हैं बाबा खाटूश्याम
जयपुर से 80 किलोमीटर दूर सीकर जिले में बाबा खाटूश्याम का मंदिर है। खाटूश्यामजी को ही श्रीकृष्ण जी का अवतार माना गया है। इन्हें कलियुग का अवतार भी कहा जाता है। यहां कि एक अलग ही विशेषता है। दरअसल भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र खाटूश्याम (बर्बरीक) थे। कौरवों और पांडवों के युद्ध होने पर बर्बरीक भी नीले घोड़े और केवल तीन बाण लेकर जाने लगे। बर्बरीक को अजेय होने का वरदान मिला था। श्रीकृष्ण ब्राह्मण के वेश में मिले और युद्ध में जाने का कारण पूछा। बर्बरीक ने युद्ध में हारने वाले की ओर से युद्ध करने की बात कहीं।

श्रीकृष्ण चिंतित हो गए। उन्होंने केवल तीन बाण से युद्ध में शामिल होने हंसी उड़ाई। उन्होंने बरगद के पेड़ के सारे पत्तों को एक ही बाण से भेदने का दावा किया। एक ही बाण से उन्होंने ऐसा कर दिया। यहां तक पैर के नीचे छुपाए पत्ते को भी निशाना बना डाला था। तब श्रीकृष्ण ने उनसे दान देने को कहा असली रूप में आकर उनसे शीश दान करने को कहा। बर्बरीक ने पूरे युद्ध को देखने की इच्छा जाहिर की। तब से बर्बरीक को शीश का दानी कहा जाता है। खाटूश्याम में ही उनके सिर की पूजा की जाती है। 1027 में रूप सिंह चौहान ने मंदिर का निर्माण करवाया था। 1720 में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ था।


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